रांची, प्रंचड गर्मी से झुलस रहे झारखंड में सियासी तापमान भी चरम पर है। अच्छे मौसम के लिए पहचानी जानी वाली राजधानी रांची का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चल रहा है। यहां के वाशिंदे इतनी गर्मी के आदी नहीं हैं और वह बेकरार हैं कब इंद्र देवता उन पर राहत की फुहार बरसाएंगे, लेकिन राजनीतिक रूप से बढ़े तापमान से राज्यवासियों को बहुत ज्यादा अचरज नहीं है।
पिछली रघुवर दास की सरकार को छोड़ दिया जाए तो यहां का राजनीतिक इतिहास काफी उथल-पुथल भरा रहा है। एक बार फिर राज्य ऐसी ही परिस्थितियों की तरफ बढ़ता दिख रहा है। कारण गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री व झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और उनके भाई विधायक बसंत सोरेन द्वारा खनन पट्टा लेने को लेकर उभरा विवाद है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने ही इसे सार्वजनिक किया है। इसके खिलाफ भाजपा ने राज्यपाल से लेकर निर्वाचन आयोग तक गुहार लगाई है। जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक ऐसा करना गलत है और प्रमाणित हो जाने पर दोनों की विधानसभा की सदस्यता निरस्त की जा सकती है। बहरहाल, भारत निर्वाचन आयोग ने इस शिकायत की प्रामाणिकता को लेकर राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेजा है।रांची, प्रदीप शुक्ला। प्रंचड गर्मी से झुलस रहे झारखंड में सियासी तापमान भी चरम पर है। अच्छे मौसम के लिए पहचानी जानी वाली राजधानी रांची का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चल रहा है। यहां के वाशिंदे इतनी गर्मी के आदी नहीं हैं और वह बेकरार हैं कब इंद्र देवता उन पर राहत की फुहार बरसाएंगे, लेकिन राजनीतिक रूप से बढ़े तापमान से राज्यवासियों को बहुत ज्यादा अचरज नहीं है।
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पिछली रघुवर दास की सरकार को छोड़ दिया जाए तो यहां का राजनीतिक इतिहास काफी उथल-पुथल भरा रहा है। एक बार फिर राज्य ऐसी ही परिस्थितियों की तरफ बढ़ता दिख रहा है। कारण गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री व झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और उनके भाई विधायक बसंत सोरेन द्वारा खनन पट्टा लेने को लेकर उभरा विवाद है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने ही इसे सार्वजनिक किया है। इसके खिलाफ भाजपा ने राज्यपाल से लेकर निर्वाचन आयोग तक गुहार लगाई है। जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक ऐसा करना गलत है और प्रमाणित हो जाने पर दोनों की विधानसभा की सदस्यता निरस्त की जा सकती है। बहरहाल, भारत निर्वाचन आयोग ने इस शिकायत की प्रामाणिकता को लेकर राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेजा है। इस विवाद को लेकर कई प्रकार की अटकलें झारखंड के सियासी गलियारे में लगाई जा रही हैं। मुख्य विपक्षी दल भाजपा इसे लेकर फिलहाल वेट एंड वाच की स्थिति में है। उधर सत्तारूढ़ गठबंधन भी संयमित है। खनन पट्टे को लेकर चल रहे पत्राचार और कार्रवाई को लेकर कोई भी दल खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है। पद पर रहते हुए खनन पट्टा लेने की बात प्रमाणित हो जाती है तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी पर खतरा मंडरा सकता है। अयोग्य होने की स्थिति में उन्हें पद छोड़ना पड़ सकता है। यही स्थिति उनके भाई विधायक बसंत सोरेन के समक्ष भी आ सकती है।
एक धड़े का मानना है कि ऐसा होना बहुत आसान नहीं है और सबकुछ दबाव की राजनीति भर है। इसी बहाने केंद्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर नकेल कसना चाहता है, जो समय-समय पर केंद्र सरकार के खिलाफ भृकुटी तानते हैं और उसे निशाने पर लेते हैं। खनन पट्टा लेने का मामला हाई कोर्ट में भी विचाराधीन है। यानी हेमंत सरकार के खिलाफ कई मोर्चे एक साथ खुल गए हैं, जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने इसे लेकर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन अधिकारियों की ओर से बताया गया है कि जिस खनन पट्टे को लेकर आरोप लगाया गया था, उसे मुख्यमंत्री की तरफ से सरेंडर किया जा चुका है।
झामुमो और उसके रणनीतिकारों ने मुख्यमंत्री पर कार्रवाई होने की स्थिति में संकट से निपटने की रणनीतियों पर काम आरंभ कर दिया है। फिलहाल 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में कुल 80 विधायक हैं। मांडर के विधायक बंधु तिर्की आय से अधिक मामले में सीबीआइ अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं। 30 विधायकों के साथ सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। उसे 16 विधायकों वाली कांग्रेस और एक विधायक वाले राजद का समर्थन है। दोनों दल सरकार में भी उसके साथ हैं। झाविमो से चुनाव जीतने वाले प्रदीप यादव भी कांग्रेस के साथ हैं।
इस लिहाज से 48 विधायकों के साथ गठबंधन की सरकार काफी मजबूत स्थिति में है। हल्के उलटफेर से इस स्थिति में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। उधर भाजपा के पास 26 विधायक हैं। उसे आजसू के दो विधायकों का समर्थन हासिल है, लेकिन हाल ही में आजसू ने रणनीतिक तौर पर विधानसभा के भीतर पांच विधायकों के एक धड़े झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के साथ खुद को जोड़ लिया है। इस स्थिति में आसानी से सत्ता में फेरबदल संभव नहीं है, जब तक किसी दल में भगदड़ न मचे। हालात विपरीत बनते हैं तो कांग्रेसी विधायकों पर सबकी नजर रहेगी।
हेमंत सरकार में कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता इस ओर इशारा भी करते रहे हैं। कांग्रेस के कुछ विधायक मंत्री बनने की चाहत में अक्सर अपनी पीड़ा सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते रहते हैं। संभव है कि उलटफेर की स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हो चुकी कांग्रेस के ऐसे विधायक अपना रंग दिखाएं।