किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में गुर्दा प्रत्यारोपण की सुविधा को फरवरी में ही लाइसेंस मिल चुका है, लेकिन कुछ कारणों से प्रत्यारोपण अब तक शुरू नहीं हो सका है। इसमें सबसे बड़ी बाधा दाता यानी डोनर की अनुपलब्धता से जुड़ी हुई है। दरअसल, स्वास्थ्य गाइडलाइंस में किडनी यानी गुर्दा डोनेट करने के जो स्पष्ट प्रविधान हैं उस कसौटी पर बहुत ही कम डोनर खरे उतर पाते हैं। इस कारण गुर्दे की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को डायलिसिस का ही सहारा लेना पड़ता है, लेकिन वह एक अस्थायी राहत ही है, क्योंकि ऐसी बीमारियों में प्रत्यारोपण के बाद ही मरीज अपना सामान्य जीवन जीने में सक्षम हो पाता है।
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इस मामले में केजीएमयू के सीएमएस और प्रत्यारोपण के प्रभारी डा. एसएन संखवार ने बताया कि गुर्दा प्रत्यारोपण में सबसे बड़ा और मुश्किल पहलू है दाता (डोनर) का मिलना। अधिकांश मामलों में मरीजों को समय से डोनर नहीं मिल पाते हैं या जो तैयार भी होते हैं, उनका रक्त समूह एक समान न होने या अन्य कारणों के चलते वह गुर्दा डोनेट नहीं कर पाते। जैसे हृदय रोग से जूझ रहे मरीज का गुर्दा नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्रत्यारोपण की सर्जरी के दौरान उन्हें एनेस्थीसिया देने में काफी जोखिम होता है। इसके अलावा उम्रदराज लोगों, उच्च रक्तचाप से पीड़ित, मधुमेह रोगियों, एचआइवी और कैंसर जैसी कई बीमारियों से जूझ रहे लोगों का गुर्दा भी नहीं लिया जाता।
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केजीएमयू में नेफ्रोलोजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. विश्वजीत सिंह ने बताया कि गुर्दे की समस्या से जूझ रहे मरीज के लिए डायलिसिस कुछ समय के लिए ही कारगर हो सकता है और उसका स्थाई समाधान प्रत्यारोपण ही है, जिसके बाद मरीज अपनी सामान्य जिंदगी जी सकता है। केजीएमयू में प्रत्यारोपण के लिए आने वाले मरीजों के परिजन या रिश्तेदार डोनर बनने के लिए तो तैयार होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य मानकों के कारण ऐसा नहीं कर पाते हैं। नेफ्रोलाजी विभाग में गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए 20 से 40 वर्ष तक की आयु के व्यक्तियों ने संपर्क किया है। इनमें से तीन मरीज गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए तैयार हैं लेकिन उनके डोनर मिलने में समस्या आ रही है।
गुर्दा प्रत्यारोपण की जटिल एवं संवेदनशील प्रक्रिया से पहले डाक्टर गहन जांच-पड़ताल करते हैं। इसमें सबसे पहले ग्राही और दाता दोनों की जांच कराई जाती है, जिसमे मुख्य रूप से रक्त समूह, एंजियोग्राफी और एचएलए टाइप मैचिंग की जांच शामिल है। इसके बाद ग्राही को डायलिसिस पर रखा जाता है। फिर उसे प्रत्यारोपण के लिए तैयार किया जाता है। जांच से लेकर प्रत्यारोपण तक की इस पूरी प्रक्रिया में करीब दो महीने का समय लगता है।
प्रत्यारोपण सर्जरी दाता से गुर्दा निकालकर ग्राही में प्रत्यारोपित करने में करीब चार से छह घंटे लगते हैं। इस दौरान दो आपरेशन थियेटर में एनेस्थिसिया, गैस्ट्रो सर्जरी, यूरोलाजी, रेडियोडायग्नोसिस, हार्ट सर्जन, कार्डियो वस्कलर सर्जन और सबसे मुख्य नेफ्रोलोजी विभाग मिलकर पूरी प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। केजीएमयू में इसके लिए लगभग तीन से साढ़े तीन लाख रुपये तक की लागत अनुमानित है। वहीं एसजीपीजीआइ में यह खर्च चार से साढ़े चार लाख रुपये तक बैठता है। निजी संस्थानों में यह लागत और अधिक है।